मुंबई, 05 नवम्बर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। बुधवार की रात दुनिया भर में आसमान का नजारा बेहद खूबसूरत रहा। साल का सबसे बड़ा चांद यानी सुपरमून दिखाई दिया, जिसने लोगों को अपनी चमक से मंत्रमुग्ध कर दिया। यह साल का दूसरा सुपरमून था, जो सामान्य पूर्णिमा की तुलना में करीब 14 गुना बड़ा और लगभग 30% ज्यादा चमकीला नजर आया। वैज्ञानिकों के मुताबिक, जब चंद्रमा अपनी कक्षा में पृथ्वी के सबसे करीब होता है, तब यह आकार में बड़ा और ज्यादा चमकदार दिखाई देता है। इसी खगोलीय घटना को सुपरमून कहा जाता है। 5 नवंबर की रात चांद पृथ्वी से करीब 3,57,000 किलोमीटर की दूरी पर था, जो सामान्य दूरी से लगभग 27,000 किलोमीटर कम है। आम तौर पर चांद पृथ्वी से सबसे दूर 4,05,000 किलोमीटर और सबसे करीब 3,63,104 किलोमीटर पर रहता है।
सुपरमून के दौरान चंद्रमा धरती का चक्कर लगाते हुए अपनी कक्षा के नजदीकी बिंदु पर पहुंच जाता है, जिसे ‘पेरिजी’ कहा जाता है। वहीं, जब चांद सबसे दूर होता है, उस स्थिति को ‘अपोजी’ कहा जाता है। इस घटना का वैज्ञानिक नाम भले ही जटिल लगे, लेकिन इसका दृश्य बेहद मनमोहक होता है। ‘सुपरमून’ शब्द का इस्तेमाल पहली बार 1979 में एस्ट्रोलॉजर रिचर्ड नोल ने किया था। चांद हर 27 दिन में पृथ्वी की परिक्रमा पूरी करता है और हर 29.5 दिन में एक बार पूर्णिमा आती है। हालांकि हर पूर्णिमा सुपरमून नहीं होती, लेकिन हर सुपरमून पूर्णिमा की रात ही दिखाई देता है। चांद की कक्षा अंडाकार होती है, इसलिए उसकी पृथ्वी से दूरी हर दिन बदलती रहती है।
जुलाई के महीने में दिखने वाले सुपरमून को ‘बक मून’ कहा जाता है। ‘बक’ शब्द का अर्थ होता है वयस्क नर हिरण। इसे यह नाम इसलिए दिया गया क्योंकि इस समय हिरणों के नए सींग उगते हैं। वहीं कुछ स्थानों पर इसे ‘थंडर मून’ भी कहा जाता है, क्योंकि जुलाई में अक्सर गरज और बिजली चमकने की घटनाएं अधिक होती हैं। आसमान में नजर आया यह सुपरमून न सिर्फ वैज्ञानिकों के लिए बल्कि आम लोगों के लिए भी एक दुर्लभ और अद्भुत अनुभव रहा, जिसने धरती के हर कोने में लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लिया।