मुंबई, 05 नवम्बर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। भारत और अमेरिका की संयुक्त पहल से तैयार किया गया NISAR सैटेलाइट 7 नवंबर से पूरी तरह ऑपरेशनल हो जाएगा। इस सैटेलाइट को 30 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया था। इसके काम शुरू करने के बाद वैज्ञानिकों को भूकंप, ज्वालामुखी, भूस्खलन, बर्फबारी, जंगलों और खेती में हो रहे बदलावों का सटीक विश्लेषण करने में मदद मिलेगी। यह सैटेलाइट हर 12 दिन में पूरी पृथ्वी की हाई-रिजोल्यूशन तस्वीरें भेजेगा।
NISAR सैटेलाइट भारत के इसरो और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की संयुक्त तकनीक से तैयार किया गया है। इसमें दो विशेष रडार लगाए गए हैं—L-बैंड, जो नासा ने विकसित किया है, और S-बैंड, जो इसरो ने बनाया है। दोनों की संयुक्त तकनीक से सैटेलाइट धरती की बेहद स्पष्ट और विस्तृत तस्वीरें लेने में सक्षम होगा। करीब 2400 किलो वजनी यह सैटेलाइट इसरो के I3K प्लेटफॉर्म पर बनाया गया है। इसमें 12 मीटर का बड़ा एंटीना लगाया गया है, जो अंतरिक्ष में पहुंचकर लगभग 9 मीटर तक फैल जाएगा। यह एक बार में 240 किलोमीटर चौड़ाई तक की तस्वीरें लेने में सक्षम होगा। मिशन की अवधि 5 साल रखी गई है और इसका डेटा पूरी दुनिया के लिए खुला और मुफ्त रहेगा।
NISAR से मिलने वाला डेटा न सिर्फ जलवायु परिवर्तन को समझने में मदद करेगा, बल्कि जंगलों, ग्लेशियरों और वेटलैंड्स की भूमिका का भी गहराई से अध्ययन किया जा सकेगा। यह सैटेलाइट इस बात की जानकारी देगा कि जंगल और वेटलैंड किस तरह से कार्बन और ग्रीनहाउस गैसों को नियंत्रित करने में योगदान देते हैं।
सैटेलाइट से बवंडर, भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट, तूफान, ग्लेशियरों के पिघलने, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि, जंगली आग और कृषि क्षेत्रों में होने वाले बदलावों की भी पहले से जानकारी मिल सकेगी। इसके जरिए धरती की सतह पर हो रहे परिवर्तनों, अंतरिक्ष से आने वाले संभावित खतरों और प्रकाश की कमी-बढ़ोतरी से जुड़ी अहम जानकारियां भी जुटाई जाएंगी। NISAR से मिलने वाली हाई-रिजोल्यूशन तस्वीरें भारत और अमेरिका दोनों देशों के लिए रणनीतिक रूप से भी अहम साबित होंगी। यह सैटेलाइट हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियरों की निगरानी में मदद करेगा और चीन तथा पाकिस्तान से लगी सीमाओं पर भी नजर रखने में सहायक होगा।