भारतीय रुपया गुरुवार को एक बार फिर बड़ी गिरावट का शिकार हुआ और डॉलर के मुकाबले $90.4675$ प्रति डॉलर के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया। यह गिरावट $4$ दिसंबर को बने पिछले ऐतिहासिक रिकॉर्ड $90.42$ को भी पार कर गई। रुपये में लगातार आ रही इस कमजोरी को थामने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को बाजार में हस्तक्षेप करना पड़ा ताकि मुद्रा को और अधिक कमजोर होने से रोका जा सके।
$2025$ रहा रुपये के लिए सबसे मुश्किल
साल $2025$ भारतीय रुपये के लिए काफी चुनौतीपूर्ण साबित हुआ है। इस साल अब तक, रुपया $5\%$ से ज्यादा गिर चुका है, जिससे यह दुनिया की $31$ प्रमुख मुद्राओं में तीसरा सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला बन गया है। इससे बदतर स्थिति केवल तुर्की की लीरा और अर्जेंटीना के पेसो की है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि रुपये में यह भारी गिरावट तब हो रही है, जब वैश्विक स्तर पर डॉलर इंडेक्स $7\%$ से ज्यादा कमजोर हुआ है, जो रुपये पर आंतरिक दबाव को दर्शाता है।
रुपये की गिरावट के प्रमुख कारण
रुपये की इस ऐतिहासिक गिरावट के पीछे कई प्रमुख कारक जिम्मेदार हैं, जिन्होंने मुद्रा पर भारी दबाव बनाया है:
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बढ़ता ट्रेड डेफिसिट (व्यापार घाटा): भारत का बढ़ता व्यापार घाटा डॉलर की मांग बढ़ा रहा है।
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अमेरिकी टैरिफ: भारत से निर्यात होने वाले सामान पर अमेरिका द्वारा लगाए गए $50\%$ तक के टैरिफ ने निर्यातकों के लिए मुश्किलें खड़ी की हैं।
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विदेशी पूंजी की निकासी: विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय बाजारों से लगातार पैसा निकालने से रुपये पर दबाव बढ़ा है।
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ट्रंप प्रशासन से अनिश्चितता: अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के साथ ट्रेड डील पर बातचीत रुकी होने से बाजार में अनिश्चितता बनी हुई है।
रुपये के $90$ के मनोवैज्ञानिक स्तर को पार करने के बाद बाजार का दबाव और बढ़ गया है। मौजूदा विनिमय दर रुपये को उसकी $2011$ की वैल्यू के मुकाबले $50\%$ तक गिरा चुकी है।
RBI के सामने बड़ी चुनौती
इस गंभीर परिदृश्य ने आरबीआई गवर्नर सजय मालहोत्रा और केंद्रीय बैंक के अन्य अधिकारियों के सामने मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। उन्हें रुपये को लचीला रखने और बाजार को स्थिर बनाए रखने के बीच संतुलन कायम करना है, ताकि देश में किसी तरह की वित्तीय अस्थिरता दोबारा न पैदा हो।
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पूंजी नियंत्रण: भारत में अभी भी पूंजी नियंत्रण लागू हैं, जिसके कारण रुपया पूरी तरह से कन्वर्टिबल (परिवर्तनीय) नहीं है।
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अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप: अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपये की ट्रेडिंग ज्यादातर NDF (नॉन-डिलिवरेबल फॉरवर्ड) बाजार में होती है। आरबीआई विदेशी बाजारों में दखल देने के लिए Bank for International Settlements (BIS) के जरिए सिंगापुर, दुबई और लंदन के प्रमुख बैंकों के साथ मिलकर हस्तक्षेप करता है।