भारतीय रुपए में पिछले दो दिनों में आई मामूली रिकवरी के बावजूद, डॉलर के मुकाबले इसकी स्थिति अभी भी चिंताजनक बनी हुई है। इस हफ्ते रुपए ने 91 प्रति डॉलर के ऐतिहासिक निचले स्तर को छूकर बाजार में खलबली मचा दी थी। आरबीआई के हस्तक्षेप और डॉलर की बिक्री के बाद रुपया थोड़ा संभला जरूर है, लेकिन इस साल अब तक इसमें 5 फीसदी से ज्यादा की गिरावट दर्ज की जा चुकी है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, जब तक भारत और अमेरिका के बीच कोई ठोस व्यापार समझौता नहीं होता, रुपए पर दबाव बना रहेगा।
रुपए की इस गिरावट का सबसे कड़ा और सीधा प्रहार उन भारतीय छात्रों और परिवारों पर पड़ रहा है, जो विदेश में, विशेषकर अमेरिका में पढ़ाई का सपना देख रहे हैं।
विदेश में पढ़ाई: जेब पर कितना पड़ेगा बोझ?
जनवरी 2026 (वसंत सत्र) से अपनी पढ़ाई शुरू करने की योजना बना रहे छात्रों के लिए बजट का गणित पूरी तरह बदल गया है। रुपए में 5-6 फीसदी की गिरावट का मतलब केवल आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि लाखों रुपयों का अतिरिक्त बोझ है:
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ट्यूशन फीस का गणित: यदि किसी कोर्स की फीस 55,000 डॉलर है, तो साल 2025 की तुलना में अब छात्रों को केवल फीस के मद में ही लगभग 3.3 लाख रुपए अतिरिक्त चुकाने होंगे।
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रहने का खर्च: यदि रहने का सालाना खर्च 15,000 डॉलर मान लिया जाए, तो 6 फीसदी की गिरावट के कारण 81,000 रुपए का और बोझ बढ़ जाएगा।
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कुल वार्षिक घाटा: कुल मिलाकर, एक औसत छात्र को प्रति वर्ष लगभग 4.11 लाख रुपए ज्यादा खर्च करने होंगे। यह राशि यूनिवर्सिटी की लोकेशन और शहर के आधार पर और भी बढ़ सकती है।
छात्रों की संख्या में भारी गिरावट: 44% की कमी
करेंसी में उतार-चढ़ाव और अमेरिका के बदलते वीजा नियमों का असर अब साफ दिखने लगा है। 'द न्यूयॉर्क टाइम्स' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगस्त 2024 की तुलना में अगस्त 2025 में अमेरिका जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में 44 फीसदी की भारी गिरावट आई है। महामारी के बाद यह सबसे बड़ा गिरावट का आंकड़ा है। इसके पीछे गिरता रुपया, सख्त वीजा नीतियां और बढ़ता 'एंटी-इमिग्रेशन सेंटीमेंट' (प्रवास विरोधी भावना) प्रमुख कारण माने जा रहे हैं।
कैसे निपट रहे हैं छात्र और परिवार?
रुपए की अस्थिरता ने परिवारों को अब अधिक सतर्क और अनुशासित बना दिया है। 'वनस्टेप ग्लोबल' के फाउंडर अरित्रा घोषाल के अनुसार, अब लोग अपने बजट की "स्ट्रेस टेस्टिंग" कर रहे हैं।
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लॉक-इन ऑप्शंस: परिवार अब ऐसी ट्यूशन फीस और लोन विकल्पों की तलाश कर रहे हैं जहाँ रेट्स को 'लॉक' किया जा सके, ताकि भविष्य में रुपए की और गिरावट का असर न पड़े।
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सख्त वित्तीय अनुशासन: छात्र अब रहने के खर्च (Living Expenses) में कटौती कर रहे हैं और पार्ट-टाइम जॉब्स या स्कॉलरशिप पर अधिक निर्भर हो रहे हैं।
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करेंसी रिस्क मैनेजमेंट: परिवार अब अंतिम समय का इंतजार करने के बजाय पहले से ही विदेशी मुद्रा का प्रबंधन कर रहे हैं।
निष्कर्ष
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि गिरते रुपए से विदेश जाने की इच्छा पूरी तरह खत्म नहीं हुई है, लेकिन इसने मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए 'एजुकेशन लोन' चुकाने और विदेशी मुद्रा जोखिम (Foreign Currency Risk) को एक बड़ी चुनौती बना दिया है। डॉलर की मजबूती आईटी सेक्टर के लिए मुनाफा ला सकती है, लेकिन एक आम छात्र के लिए यह किसी वित्तीय झटके से कम नहीं है।