अमेरिका और भारत के बीच संबंध हाल के वर्षों में वैश्विक रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में संतुलन बनाए रखने से लेकर रक्षा, व्यापार और तकनीकी सहयोग तक—दोनों देशों की साझेदारी लगातार मजबूत होती रही है। लेकिन इसी बीच अमेरिका की एक सांसद ने आरोप लगाया है कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत के प्रति नीतियां इस रणनीतिक भरोसे और पारस्परिक समझ को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा रही हैं।
कैलिफॉर्निया से डेमोक्रेटिक पार्टी की सांसद सिंडी कमलागर-डोव ने कहा कि यदि ट्रंप ने अपनी नीतियों में बदलाव नहीं किया, तो वे इतिहास में ऐसे राष्ट्रपति के रूप में दर्ज होंगे जिन्होंने भारत को दूर कर दिया और अमेरिकी हितों को कमजोर कर दिया। उन्होंने कड़े शब्दों में कहा कि ट्रंप की विदेश नीति न केवल भारत के साथ संबंधों को चोट पहुंचा रही है, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रही है।
संसद की दक्षिण और मध्य एशिया से जुड़ी उपसमिति की बैठक के दौरान संबोधित करते हुए सिंडी ने कहा—
“अगर ट्रंप अपनी नीति में बदलाव नहीं करते, तो वे भारत को खो देने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति बन जाएंगे। उन्होंने रूस को मजबूत किया है, यूरोपीय ट्रांसअटलांटिक गठबंधन को कमजोर किया है और लैटिन अमेरिका को अस्थिरता की ओर धकेला है। यह किसी भी राष्ट्रपति के लिए गर्व की विरासत नहीं हो सकती।”
उन्होंने यह भी कहा कि आने वाले समय में जब इतिहास लिखा जाएगा, तो भारत के प्रति ट्रंप की शत्रुता की शुरुआत एक ऐसी वजह से बताई जाएगी जिसका रणनीतिक हितों से कोई संबंध नहीं है। यह वजह है—नोबेल शांति पुरस्कार पाने का उनका व्यक्तिगत जुनून। सांसद के अनुसार यह भले ही सुनने में अजीब लगे, लेकिन इसकी वजह से जो नुकसान हुआ है, उसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।
ट्रंप पहले भी यह दावा कर चुके हैं कि उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिलना चाहिए, क्योंकि उन्होंने “दुनिया भर में संघर्षों को समाप्त किया है।” उन्होंने अपने दावे में भारत और पाकिस्तान के बीच मई में हुए संघर्ष का भी उल्लेख किया था। सांसद कमलागर-डोव ने इस बयान को अवास्तविक बताया और कहा कि ट्रंप की कोशिशें वास्तविक कूटनीतिक प्रक्रियाओं से मेल नहीं खातीं।
अपने संबोधन में उन्होंने भारत के प्रति ट्रंप प्रशासन की नीतियों की विस्तार से आलोचना की। इनमें सबसे बड़ी आलोचना 50 प्रतिशत तक लगाए गए आयात शुल्क और एच1बी वीज़ा पर 100,000 डॉलर शुल्क से जुड़ी थी। उन्होंने कहा कि ये निर्णय भारत-अमेरिका आर्थिक और मानव संसाधन संबंधों पर गहरा प्रभाव डालते हैं।
एच1बी वीज़ा भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स, इंजीनियर्स, डॉक्टरों और शोधकर्ताओं के लिए एक प्रमुख रास्ता है। अमेरिका में रहने वाले भारतीयों का एक बड़ा हिस्सा इसी वीज़ा के सहारे काम करता है। शुल्क बढ़ाने जैसी कार्रवाइयों से भारतीय प्रतिभाओं पर सीधा असर पड़ सकता है और इससे दोनों देशों के तकनीकी साझेदारी पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
सिंडी कमलागर-डोव ने कहा कि इन नीतियों से “वास्तविक और स्थायी नुकसान” हुआ है। उन्होंने वॉशिंगटन से अपील की कि अमेरिका को अविश्वसनीय तत्परता दिखाते हुए कदम उठाने होंगे, ताकि भारत के साथ बिगड़ते रिश्तों को फिर से पटरी पर लाया जा सके। उनके अनुसार अमेरिका के दीर्घकालिक हितों के लिए भारत एक अनिवार्य साझेदार है और इस संबंध में आई दरारों को जल्द भरना जरूरी है।
अमेरिका और भारत दोनों ही इंडो-पैसिफिक में स्वतंत्र और खुला क्षेत्र बनाए रखने के पक्षधर हैं। ऐसे में किसी भी तरह की कूटनीतिक दूरी न केवल दोनों देशों के लिए हानिकारक है, बल्कि क्षेत्रीय सुरक्षा और वैश्विक संतुलन पर भी असर डाल सकती है। कमलागर-डोव का बयान इसी चिंता को दर्शाता है कि यदि वर्तमान नीतियों में सुधार नहीं हुआ, तो आने वाले वर्षों में इसका गंभीर परिणाम देखने को मिल सकता है।