अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच हालिया खूनी संघर्ष को समाप्त करने के लिए आज तुर्की के इस्तांबुल शहर में दूसरे दौर की उच्च-स्तरीय शांति वार्ता आयोजित की जा रही है। तुर्की सरकार द्वारा आयोजित यह बैठक दोनों पड़ोसी देशों के बीच तनाव को कम करने और सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थायी शांति बहाल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। वार्ता का मुख्य उद्देश्य एक स्थायी युद्धविराम स्थापित करना और दशकों पुराने सीमा सुरक्षा तथा आतंकवाद से जुड़े मुद्दों का समाधान खोजना है।
अफगान तालिबान सरकार की ओर से इस महत्वपूर्ण प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व उप गृह मंत्री हाजी नजीब कर रहे हैं, जो आज इस्तांबुल पहुंच रहे हैं। हालांकि, पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल में कौन से उच्चाधिकारी शामिल हैं, इस संबंध में आधिकारिक जानकारी अभी तक सार्वजनिक नहीं की गई है। माना जा रहा है कि दोनों पक्ष डूरंड रेखा पर व्याप्त तनाव को कम करने और भविष्य में सैन्य टकराव को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
संघर्ष की जड़ें: आरोप-प्रत्यारोप और सीमा विवाद
दोनों देशों के बीच हालिया संघर्ष 10 अक्टूबर की रात उस समय भड़का जब पाकिस्तान ने अफगानिस्तान पर तहरीक-ए-पाकिस्तान तालिबान (टीटीपी) आतंकवादी समूह को पनाह देने का आरोप लगाते हुए काबुल सहित कई अफगान शहरों में हवाई हमले किए। इसके जवाब में, अफगानिस्तान ने भी पाकिस्तान पर आईएसआईएस-खुरासान (आईएसआईएस-के) के लड़ाकों और आतंकवादियों को समर्थन देने का आरोप लगाया और जवाबी कार्रवाई की। लगभग पाँच दिनों तक, डूरंड रेखा पर दोनों सेनाओं के बीच भीषण गोलीबारी और सैन्य टकराव देखा गया, जिसमें दोनों पक्षों के सैनिक और नागरिक हताहत हुए।
यह तनाव मुख्य रूप से 1893 में खींची गई डूरंड रेखा को लेकर है, जिसे पाकिस्तान अपनी अंतरराष्ट्रीय सीमा मानता है, जबकि अफगानिस्तान इसे स्वीकार करने से इनकार करता रहा है। 2021 में काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद से, पाकिस्तान में टीटीपी की बढ़ती गतिविधियों के कारण सीमा पर तनाव और गहरा गया है। पाकिस्तान टीटीपी को पनाह देने का आरोप लगाता है, जिसे अफगान तालिबान खारिज करता है, जबकि पाकिस्तान भी आईएसआईएस-के को समर्थन देने के अफगान आरोपों को निराधार बताता है।
मध्यस्थता ने दिलाई अस्थायी राहत
संघर्ष के दौरान, पाकिस्तान के चमन और अफगानिस्तान के स्पिन बोल्डाक क्षेत्रों में सबसे अधिक क्षति हुई, जिसमें दुखद रूप से अफगान क्रिकेटरों की मौत भी शामिल थी। बढ़ते तनाव के बीच, 15 अक्टूबर को कतर की राजधानी दोहा में हुई बातचीत के बाद दोनों देशों के बीच 48 घंटे का अस्थायी युद्धविराम हुआ। इसके बाद, कतर और तुर्की की सक्रिय मध्यस्थता के प्रयासों से 19 अक्टूबर को स्थायी युद्धविराम पर सहमति बनी। इस समझौते पर अफगान रक्षा मंत्री मुल्ला मुहम्मद याकूब और पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ख्वाजा मुहम्मद आसिफ ने हस्ताक्षर किए थे, जिससे हिंसा पर विराम लग सका।
सीमाबंदी का व्यापार और आम लोगों पर असर
संघर्ष के बाद, जब पाकिस्तान ने डूरंड रेखा पर बाड़ लगाने का प्रयास किया, तो हिंसक झड़पें हुईं, जिसके परिणामस्वरूप सीमा को बंद कर दिया गया। इस सीमाबंदी का दोनों देशों के व्यापार और आम लोगों पर गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। अफगानिस्तान के ‘चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री’ के अनुसार, व्यापारियों को प्रतिदिन लाखों डॉलर का नुकसान हो रहा है। सीमा बंद होने से व्यापार मार्ग ठप हो गए हैं, जिससे दोनों देशों के बीच वाणिज्य रुक गया है। हजारों लोग विस्थापित हुए हैं और बेघर हो गए हैं।
आज इस्तांबुल में होने वाली वार्ता दोनों देशों के लिए स्थायी शांति और स्थिरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है। वैश्विक समुदाय की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या दोनों पक्ष मतभेदों को भुलाकर सीमा सुरक्षा और आतंकवाद के मुद्दे पर एक व्यापक और स्थायी समाधान पर पहुंच पाएंगे।