नई दिल्ली। रंगों के त्यौहार होली से ठीक एक दिन पहले मनाया जाने वाला होलिका दहन सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि आस्था, विश्वास और वैज्ञानिक महत्व से जुड़ा एक अहम उत्सव है। यह रात प्रतीक है बुराई पर अच्छाई की जीत का। जब जलती होलिका की अग्नि में लकड़ियां और गोबर के उपले अर्पित किए जाते हैं, तो ऐसा माना जाता है कि समस्त नकारात्मक ऊर्जा राख में बदल जाती है और वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
परंपरा और श्रद्धा का संगम: गोबर के उपले जलाने की परंपरा
भारत में होलिका दहन सदियों से चली आ रही एक पवित्र परंपरा है। विशेष रूप से गाय के गोबर से बने उपले इस अनुष्ठान का मुख्य हिस्सा होते हैं। हिंदू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है और उसका गोबर शुद्धता का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि होलिका दहन के समय गोबर के कंडे जलाने से वातावरण शुद्ध होता है और घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है। धार्मिक ग्रंथों और पुरानी कथाओं के अनुसार, होलिका दहन सिर्फ पौराणिक घटना नहीं, बल्कि सामाजिक और आध्यात्मिक चेतना का जागरण भी है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है यह परंपरा
गाय के गोबर के उपले जलाने के पीछे वैज्ञानिक वजह भी हैं। जब ये उपले जलते हैं, तो वातावरण में प्राकृतिक रूप से शुद्धिकरण होता है। इससे उत्पन्न धुआं मच्छरों, हानिकारक कीटाणुओं और वायरस को समाप्त करता है। यही कारण है कि गोबर का उपयोग यज्ञ और हवन जैसे धार्मिक कार्यों में भी किया जाता है। इसके अलावा होलिका की अग्नि में नारियल, चावल, ताजे फूल आदि अर्पित करने की परंपरा भी जीवन में सुख-शांति और समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए की जाती है।
बुरी नजर और नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा का प्रतीक
होलिका दहन के अवसर पर कई स्थानों पर महिलाएं विशेष रस्म अदा करती हैं। वे गाय के गोबर से बनी मालाएं अपने बच्चों और भाइयों के सिर पर रखती हैं और फिर उन्हें होलिका की अग्नि को अर्पित कर देती हैं। यह विश्वास है कि इससे बुरी नजर और किसी भी प्रकार की नकारात्मक शक्ति का असर समाप्त हो जाता है। कहा जाता है कि होलिका दहन की अग्नि में चढ़ाए गए उपले, घर की हर समस्या और कष्ट को समाप्त करने में मदद करते हैं।
खुशहाली और स्वच्छ पर्यावरण का संदेश
होलिका दहन के इस धार्मिक अनुष्ठान का सीधा संबंध हमारे पर्यावरण से भी है। गाय के गोबर के उपले जलने से निकला धुआं न केवल कीटाणुओं को मारता है, बल्कि पर्यावरण को भी शुद्ध करता है। इससे कई तरह की मौसमी बीमारियों का खतरा भी कम हो जाता है। आज के आधुनिक युग में भी, यह परंपरा अपनी जगह बनाए हुए है। लोग मानते हैं कि होलिका दहन जीवन में सकारात्मकता लाता है, घर की बाधाएं दूर करता है और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है।
निष्कर्ष
होलिका दहन केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन को शुद्ध, सुरक्षित और खुशहाल बनाने की एक सांस्कृतिक प्रक्रिया भी है। इसमें छुपे वैज्ञानिक तथ्य और आध्यात्मिक महत्व दोनों ही इसे और खास बनाते हैं।