यह हालिया संवाद और घटनाक्रम अफगानिस्तान, भारत और क्षेत्रीय कूटनीति में हो रहे जटिल बदलावों की एक महत्वपूर्ण झलक पेश करते हैं। तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन और अफगान विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी द्वारा भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर से फोन पर बात करना एक ऐसे दौर में हुआ है, जब क्षेत्रीय स्थिरता और द्विपक्षीय संबंधों को पुनः स्थापित करने की जरूरत महसूस की जा रही है। आइए विस्तार से इस संदर्भ को समझते हैं।
भारत-अफगानिस्तान संबंधों का इतिहास और वर्तमान स्थिति
भारत और अफगानिस्तान के बीच सदियों पुराने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध रहे हैं। दोनों देशों ने एक-दूसरे के विकास और स्थिरता में सहयोग किया है। लेकिन अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद यह संबंध जटिल हो गए हैं। भारत ने तालिबान को आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी है, परंतु क्षेत्रीय सुरक्षा और विकास के दृष्टिकोण से रिश्ते बनाए रखने के लिए प्रयास करता रहा है।
अफगानिस्तान में निवेश और विकास परियोजनाओं में भारत की गहरी दिलचस्पी है, जैसे कि कंधार के पास अस्पताल निर्माण, सड़कें और अन्य बुनियादी ढांचे के कार्य। इस बीच, अफगानिस्तान के भीतर तालिबान की नई सरकार के साथ संबंध सुधारने के लिए द्विपक्षीय संवाद को जारी रखना भी आवश्यक हो गया है, ताकि क्षेत्र में स्थिरता बनी रहे और आतंकवाद को बढ़ावा न मिले।
फोन कॉल की पृष्ठभूमि और महत्व
जानकारों के मुताबिक, मुत्ताकी द्वारा जयशंकर को फोन करना बहुत महत्वपूर्ण था, खासकर इसके बाद जब भारत के अफगानिस्तान में विशेष दूत विक्रम मिस्री ने काबुल की यात्रा की थी। यह कदम दोनों पक्षों के बीच भरोसे को बढ़ावा देने और आपसी मतभेदों को कम करने की कोशिश का हिस्सा माना जा सकता है।
यह फोन कॉल पाकिस्तान के एक हिस्से में चल रही झूठी रिपोर्टों को खारिज करने के संदर्भ में भी आई, जिनमें भारत को अफगानिस्तान में फर्जी हमले करवाने का आरोप लगाया गया था। जयशंकर ने इस बात को स्पष्ट किया कि भारत अफगानिस्तान के साथ भरोसेमंद और पारदर्शी संबंध चाहता है और इस तरह के आरोप बेबुनियाद हैं।
तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन का रोल
सुहैल शाहीन, जो कि कतर में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख और मुख्य प्रवक्ता हैं, एक बहुत ही महत्वपूर्ण शख्सियत हैं। उनके पास कूटनीतिक और मीडिया का अच्छा अनुभव है, जिसने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तालिबान के लिए संवाद स्थापित करने में सक्षम बनाया है।
उनका मानना है कि अफगानिस्तान को भारत के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को न केवल पुनः स्थापित करना चाहिए, बल्कि उन्हें और मजबूत करना चाहिए। शाहीन ने साफ कहा कि तालिबान की नीति सभी देशों के लिए खुली है, जो अफगानिस्तान में निवेश करना चाहते हैं और विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग करना चाहते हैं। यह बयान तालिबान की नई रणनीति को दर्शाता है, जिसमें वे क्षेत्रीय देशों के साथ सकारात्मक और सहयोगात्मक संबंध बनाना चाहते हैं।
द्विपक्षीय व्यापार और निवेश के अवसर
अफगानिस्तान और भारत दोनों ही द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने के इच्छुक हैं। वर्तमान में यह व्यापार लगभग 1 अरब डॉलर के स्तर पर है, जिसे बढ़ाना दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद होगा। इस संदर्भ में तालिबान ने निवेशकों को अफगानिस्तान में आने का निमंत्रण दिया है। भारत की दृष्टि से यह एक अवसर है कि वह अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में सहायता करे, जिससे क्षेत्र में स्थिरता बढ़े और अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था मजबूत हो।
तालिबान के उप गृह मंत्री की भारत यात्रा
फोन कॉल के बाद तालिबान के कार्यवाहक उप गृह मंत्री मोहम्मद इब्राहिम सदर की भारत यात्रा भी चर्चा में है। हालांकि सूत्रों ने स्पष्ट किया है कि यह यात्रा किसी आधिकारिक कार्यक्रम का हिस्सा नहीं थी, बल्कि उनका इलाज के लिए भारत आना था। फिर भी यह संकेत देता है कि अफगान और भारतीय अधिकारियों के बीच अनौपचारिक संपर्क और संवाद जारी है, जो भविष्य में द्विपक्षीय संबंधों के लिए सकारात्मक माना जा सकता है।
क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भारत-तालिबान संवाद की अहमियत
अफगानिस्तान की स्थिति में शांति और स्थिरता दक्षिण एशिया के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत, ईरान, चीन, रूस और अमेरिका जैसे क्षेत्रीय और वैश्विक खिलाड़ी अफगानिस्तान के भविष्य में रुचि रखते हैं। ऐसे में भारत-तालिबान संवाद को जारी रखना जरूरी है ताकि आतंकवाद, दहशतगर्दी और अन्य अस्थिरता फैक्टरों को नियंत्रित किया जा सके।
तालिबान की ओर से भारत के साथ संवाद को खुले दिल से स्वीकार करना भी एक सकारात्मक संकेत है, जो यह दर्शाता है कि वे अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ बेहतर संबंध बनाना चाहते हैं।
निष्कर्ष
सर्गेई लावरोव के बयान, मुत्ताकी-जयशंकर के फोन कॉल, सुहैल शाहीन के कूटनीतिक प्रयास और तालिबान के अन्य नेताओं की भारत यात्रा सभी मिलकर यह दिखाते हैं कि अफगानिस्तान और भारत के बीच संबंधों को फिर से गढ़ने का दौर शुरू हो चुका है।
हालांकि चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बीच भी दोनों देशों के बीच संवाद और सहयोग के रास्ते खुल रहे हैं, जो क्षेत्रीय स्थिरता, आर्थिक विकास और सुरक्षा के लिए फायदेमंद होंगे। यह प्रक्रिया न केवल अफगानिस्तान बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए एक सकारात्मक संकेत है।