नेपाल में Gen-Z आंदोलन के दबाव में आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा। भीषण विरोध प्रदर्शन और हिंसा के बाद सोशल मीडिया पर लगा प्रतिबंध हटा लिया गया है। नेपाल के संचार, सूचना और प्रसारण मंत्री पृथ्वी सुब्बा गुरूंग ने इस बात की घोषणा करते हुए बताया कि यह निर्णय कैबिनेट की आपात बैठक में लिया गया, जहां सर्वसम्मति से बैन हटाने का फैसला किया गया।
अब देश में व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, एक्स (ट्विटर) सहित सभी 26 से अधिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म दोबारा सक्रिय कर दिए गए हैं।
हिंसा में 20 की मौत, 300 से ज्यादा घायल
सरकार के अनुसार, बीते दिनों हुए प्रदर्शन और पुलिस की कार्रवाई में 20 लोगों की जान चली गई, जबकि 300 से अधिक लोग घायल हुए हैं। इनमें से 28 पुलिसकर्मी भी शामिल हैं। राजधानी काठमांडू, पूर्वी शहर इटहारी और अन्य हिस्सों में हालात काफी तनावपूर्ण रहे।
स्थिति को काबू में लाने के लिए सरकार ने सेना तैनात की और काठमांडू में कर्फ्यू लागू कर दिया। इसके साथ ही स्कूल-कॉलेज दो दिन के लिए बंद कर दिए गए हैं और परीक्षाएं स्थगित कर दी गई हैं।
गृह मंत्री का इस्तीफा, न्यायिक जांच शुरू
घटनाक्रम के बाद नेपाल के गृह मंत्री रमेश लेखक ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने हिंसा के पीछे बाहरी तत्वों की साजिश का आरोप लगाया है और कहा कि "सरकार किसी भी उग्रवादी दबाव के आगे नहीं झुकेगी।"
हालांकि स्थिति को देखते हुए उन्होंने एक न्यायिक जांच समिति का गठन किया है जो 15 दिनों में रिपोर्ट सौंपेगी। साथ ही, उन्होंने मृतकों के परिजनों को मुआवजा और घायलों को मुफ्त इलाज देने की घोषणा भी की है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना
नेपाल की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र, एमनेस्टी इंटरनेशनल, ह्यूमन राइट्स वॉच, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस सहित कई देशों ने चिंता जताई है। इन संगठनों ने प्रदर्शनकारियों और आम नागरिकों पर बल प्रयोग की निंदा की और स्वतंत्र जांच की मांग की।
भारत ने भी घटनाओं पर दुख जताते हुए शांति की अपील की है।
क्यों लगा था सोशल मीडिया पर बैन?
नेपाल सरकार ने 4 सितंबर 2025 को सोशल मीडिया पर बैन लगाया था। इसका कारण बताया गया था कि सोशल मीडिया कंपनियों ने सरकारी नियमों के तहत पंजीकरण नहीं कराया और फेक न्यूज़, घृणित भाषा और साइबर क्राइम को रोकने के लिए यह कदम उठाया गया।
लेकिन Gen-Z युवाओं ने इसे "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला" बताते हुए आंदोलन छेड़ दिया। उनका मानना था कि सरकार लोकतंत्र को दबाने की कोशिश कर रही है।
संसद भवन तक पहुंचे प्रदर्शनकारी
8 सितंबर को ‘हामी नेपाल’ संगठन के नेतृत्व में हजारों की संख्या में Gen-Z प्रदर्शनकारी काठमांडू के मैतीघर मंडला से मार्च करते हुए संसद भवन तक पहुंच गए। पुलिस द्वारा लगाए गए बैरिकेड्स तोड़े गए, एंबुलेंस को आग लगा दी गई और पुलिस पर पथराव हुआ।
हालात बेकाबू होते देख पुलिस ने वॉटर कैनन, आंसू गैस, और अंततः लाइव फायरिंग का सहारा लिया, जिसमें दर्जनों लोग घायल हुए और कई जानें गईं।
निष्कर्ष
नेपाल में हालिया घटनाएं यह दर्शाती हैं कि सोशल मीडिया और स्वतंत्र अभिव्यक्ति को दबाने की कोशिशें किस तरह युवाओं के आक्रोश का कारण बन सकती हैं। Gen-Z आंदोलन ने यह साबित कर दिया कि डिजिटल युग में सूचना पर नियंत्रण थोपना आसान नहीं है। सरकार का बैन हटाना एक बड़ा कदम है, लेकिन यह भी स्पष्ट हो गया है कि जनता की आवाज को दबाया नहीं जा सकता।
अब देखना होगा कि न्यायिक जांच समिति की रिपोर्ट में क्या सामने आता है और नेपा