नई दिल्ली / वाशिंगटन — पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच उपजा तनाव अब वैश्विक राजनीतिक विमर्श का विषय बन गया है। भारत द्वारा किए गए ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को ध्वस्त कर आतंक के खिलाफ भारत की आक्रामक नीति को स्पष्ट कर दिया है। लेकिन इसी के बीच अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक चौंकाने वाला दावा करते हुए कहा कि "अमेरिका ने भारत-पाकिस्तान के बीच संभावित परमाणु युद्ध को टाल दिया।"
यह बयान उस वक्त आया जब दोनों देशों के बीच सीजफायर को लेकर सहमति बनी, और युद्ध की आशंका कम होती दिखाई दी।
पहलगाम हमला: टकराव की चिंगारी
सब कुछ शुरू हुआ कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले से, जिसमें सुरक्षाबलों को गंभीर नुकसान पहुंचा। हमले के तुरंत बाद भारत ने पाकिस्तान पर आतंकियों को पनाह देने का आरोप लगाया और इसके जवाब में "ऑपरेशन सिंदूर" को अंजाम दिया गया।
भारतीय सेना ने इस ऑपरेशन में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) और सीमा पार स्थित 9 आतंकी ठिकानों को ध्वस्त कर दिया। इसके जवाब में पाकिस्तान की ओर से सीमित सैन्य प्रतिक्रिया की कोशिश की गई, जिसे भारतीय सेना ने नाकाम कर दिया।
इस घटनाक्रम ने दोनों परमाणु संपन्न देशों को एक बार फिर आमने-सामने लाकर खड़ा कर दिया, और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंता बढ़ गई।
ऑपरेशन सिंदूर: भारत की नई सैन्य नीति का संकेत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले ही राष्ट्र को संबोधित करते हुए स्पष्ट कर दिया था कि भारत अब न्यूक्लियर ब्लैकमेल नहीं सहेगा, और आतंक का जवाब सटीक, समयबद्ध और अपनी शर्तों पर देगा।
भारत की ओर से यह स्पष्ट किया गया कि आतंकी हमलों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और यदि जरूरत पड़ी तो सैन्य कार्रवाई दुश्मन की सीमा में घुसकर भी की जा सकती है। ऑपरेशन सिंदूर उसी रणनीति का हिस्सा था, जिसने भारत की बदली हुई सैन्य सोच को दुनिया के सामने रखा।
सीजफायर के पीछे अमेरिका की भूमिका?
जब युद्ध की आशंका अपने चरम पर थी, तब अमेरिका की सक्रिय कूटनीतिक भूमिका सामने आई। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को दावा किया कि “हमने भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु संघर्ष को रोका।”
ट्रंप ने कहा कि उनका प्रशासन दोनों देशों के नेताओं के संपर्क में था और उन्होंने तत्काल सीजफायर पर सहमति बनाने में मदद की। उन्होंने कहा:
“अगर आप युद्ध रोकते हैं, तो हम व्यापार करेंगे। अगर आप युद्ध नहीं रोकते, तो कोई व्यापार नहीं।”
यह बयान यह दर्शाता है कि अमेरिका ने व्यापार को एक रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया ताकि भारत और पाकिस्तान को बातचीत के रास्ते पर लाया जा सके।
ट्रंप की 'ट्रेड डिप्लोमेसी'
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने बयान में यह भी कहा कि “लोगों ने व्यापार का उपयोग उस तरह कभी नहीं किया जैसा मैंने किया।”
उनका मानना है कि आर्थिक प्रलोभन या दबाव के जरिए संघर्ष टाला जा सकता है, और यही उन्होंने भारत-पाकिस्तान के मामले में किया।
उन्होंने आगे कहा:
“भारत और पाकिस्तान के पास बहुत सारे परमाणु हथियार हैं। अगर यह संघर्ष परमाणु युद्ध में बदल जाता, तो लाखों लोग मारे जाते।”
ट्रंप के अनुसार, उनके हस्तक्षेप ने इस विनाशकारी संभावना को रोका और स्थायी सीजफायर का मार्ग प्रशस्त किया।
सीजफायर: स्थायी या अस्थायी?
जहाँ एक ओर अमेरिका इसे स्थायी युद्धविराम कह रहा है, वहीं भारत की स्थिति बहुत स्पष्ट है। प्रधानमंत्री मोदी ने पहले ही साफ कर दिया कि सीजफायर तभी टिकेगा जब पाकिस्तान अपनी जमीन से आतंकवाद को खत्म करेगा।
भारत की रणनीति अब बदल चुकी है — यह रक्षात्मक नहीं, बल्कि आक्रामक और निर्णायक है। इसलिए यह कहना जल्दबाजी होगी कि यह सीजफायर लंबे समय तक कायम रहेगा, जब तक कि पाकिस्तान अपनी नीति में बदलाव न करे।
क्या अमेरिका की मध्यस्थता स्वीकार्य है?
भारत सदैव से यह कहता आया है कि भारत और पाकिस्तान के सभी मुद्दे द्विपक्षीय हैं, और किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता की आवश्यकता नहीं है। हालांकि, अमेरिका की भूमिका को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता, क्योंकि वैश्विक मंच पर व्यापार, सैन्य सहयोग और कूटनीति में अमेरिका का प्रभाव अत्यधिक है।
डोनाल्ड ट्रंप का यह बयान राजनीतिक रूप से भले ही अमेरिकी हितों को ध्यान में रखकर दिया गया हो, लेकिन यह भारत-पाकिस्तान के मौजूदा संबंधों और क्षेत्रीय स्थिरता पर गहरा प्रभाव डालता है।
निष्कर्ष: एक संकट टला, लेकिन समाधान नहीं
डोनाल्ड ट्रंप के बयान से स्पष्ट है कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ता तनाव अब केवल दो देशों का मामला नहीं रहा। परमाणु हथियारों की मौजूदगी और सीमापार आतंकवाद ने इसे वैश्विक चिंता का विषय बना दिया है।
जहाँ ऑपरेशन सिंदूर भारत की ताकत और आत्मरक्षा की क्षमता को दर्शाता है, वहीं अमेरिकी हस्तक्षेप यह दिखाता है कि व्यापार और कूटनीति भी युद्ध को रोकने में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
लेकिन बड़ा सवाल यही है — क्या पाकिस्तान सचमुच आतंक को खत्म करने को तैयार है?
अगर नहीं, तो यह सीजफायर भी अतीत की अस्थायी शांति की तरह ही टूट सकता है।