मुंबई, 06 जुलाई, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के बाद देश की एक और प्रमुख मुस्लिम संस्था जमीयत उलेमा-ए-हिंद भी UCC के विरोध में आ गई है। लॉ कमीशन को दिए अपने सुझाव में जमीयत ने कहा है कि वह समान नागरिक संहिता के खिलाफ है, क्योंकि यह धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ है, जिसे संविधान के तहत गारंटी दी गई है। जमीयत ने 22वें विधि आयोग को भेजी गई आपत्तियों का सारांश शेयर किया, जिसमें जमीयत अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा है कि UCC पर बहस शुरू करना एक राजनीतिक साजिश है। वहीं, नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कहा है कि UCC से किसका फायदा होगा। सरकार जिस तरह देश चलाना चाहती है, वह गलत है।
मदनी ने लॉ कमीशन को लिखे पत्र में कहा है कि यह मुद्दा सिर्फ मुस्लिमों से ही नहीं, बल्कि सभी भारतीयों से जुड़ा हुआ है। वह यह भी बताते हैं कि मुसलमान समुदाय अपने धर्म का पालन स्वतंत्र रूप से कर रहे हैं और वे किसी भी तरह से धार्मिक मामलों और पूजा पद्धति पर समझौता नहीं करेंगे। जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से यह भी कहा गया है कि कोई भी फैसला नागरिकों पर थोपा नहीं जाना चाहिए और उन्हें निर्णय लेने से पहले आम सहमति बनाने की कोशिश की जानी चाहिए। इसके लिए सरकार को देश के सभी धर्मों के नेताओं और सामाजिक एवं आदिवासी समुदायों से सलाह और उन्हें विश्वास में लेना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा की यहां तक कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलेमा-ए-हिंद दावा करते हैं कि उनका पर्सनल लॉ कुरान और सुन्नत पर आधारित है और उसमें कयामत के दिन तक कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है। वे यह स्पष्ट करते हैं कि इसका मतलब यह नहीं है कि वे असंवैधानिक बात कर रहे हैं, लेकिन संविधान द्वारा उन्हें इसकी आजादी दी गई है।