मुंबई, 05 जून, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर राजस्थान के जोधपुर जिले के लूणी विधानसभा क्षेत्र के धवा गांव में उस वक्त अनोखा दृश्य देखने को मिला, जब पर्यावरण बचाने के संकल्प के साथ पहुंचे सरकारी अधिकारियों को गांव की महिलाओं के तीखे विरोध का सामना करना पड़ा। वंदे गंगा जल संरक्षण अभियान के तहत आयोजित कार्यक्रम के दौरान जब मंच से पर्यावरण की शपथ दिलाई जा रही थी, तभी बड़ी संख्या में महिलाओं ने हाथों में पोस्टर उठाकर विरोध जताना शुरू कर दिया। महिलाओं ने एक सुर में कहा कि जब तक उनकी जीवनदायिनी जोजरी नदी को साफ नहीं किया जाता, तब तक पर्यावरण दिवस की औपचारिकताएं बेकार हैं।
कार्यक्रम के लिए मेलबा गांव का तालाब चुना गया था, जिसे ग्रामीणों ने स्वयं स्वच्छ किया था, जबकि धवा गांव का तालाब आज भी जोजरी नदी के ज़हरीले पानी से बर्बाद पड़ा है। महिलाओं ने आरोप लगाया कि अधिकारी सिर्फ दिखावे के लिए स्वच्छ स्थानों को चुनते हैं, जबकि असली समस्या से मुंह मोड़ लेते हैं। उनका कहना था कि जोजरी की हालत सुधरे बिना कोई भी अभियान सफल नहीं होगा। कभी जीवन देने वाली जोजरी नदी आज औद्योगिक और सीवेज कचरे से भर चुकी है। टेक्सटाइल, डाई और रंगाई उद्योगों का अपशिष्ट जल इसमें बिना ट्रीटमेंट डाला जा रहा है, जिससे नदी में लेड, क्रोमियम, मरकरी जैसे खतरनाक तत्वों की मात्रा बढ़ गई है। इसका असर खेतों, मवेशियों और इंसानों पर साफ दिखाई दे रहा है। लोग गंदा पानी पीने को मजबूर हैं, बच्चों में बीमारियां बढ़ रही हैं और खेती पूरी तरह चौपट हो रही है।
इस मुद्दे पर कई बार एनजीटी में याचिकाएं दायर हुई हैं और प्रशासन पर जुर्माना भी लगाया गया है। हाल ही में सरकार ने 176 करोड़ की योजना का ऐलान किया है, जिसमें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और पाइपलाइन सुधार जैसे काम शामिल हैं, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि जब तक नदी में गंदा पानी गिरना पूरी तरह बंद नहीं होता, तब तक राहत नहीं मिलेगी। महिलाओं का साफ कहना था कि उनके लिए जोजरी ही गंगा है और अगर सरकार सच में जल संरक्षण अभियान को लेकर गंभीर है तो पहले जोजरी को बचाना होगा। उनके अनुसार मेलबा तालाब को गांववालों ने मिलकर पुनर्जीवित किया, लेकिन जब तक जोजरी का जहर बहता रहेगा, तब तक उनके जीवन और पशुधन की सुरक्षा नहीं हो सकती। राज्य सरकार द्वारा 5 से 20 जून तक चलाए जा रहे वंदे गंगा जल संरक्षण अभियान की जमीनी सच्चाई इस विरोध के माध्यम से उजागर हो गई, जिससे साफ है कि केवल औपचारिक कार्यक्रमों से ग्रामीणों की समस्याएं हल नहीं होंगी।