ह दिल दहला देने वाली घटना सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं है, बल्कि पूरे देश के लिए एक पीड़ा है। जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में हुआ यह आतंकी हमला न केवल सीमा पर मौजूद तनाव को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे निर्दोष नागरिक, खासकर बच्चे, पाकिस्तान के नापाक मंसूबों की बलि चढ़ जाते हैं।
जुड़वा बच्चों की दर्दनाक मौत
12 साल के मासूम जुड़वा भाई-बहन, जोया और अयान खान, जिनके सपने अभी बस आकार ले ही रहे थे, वे इस गोलाबारी में हमेशा के लिए खामोश हो गए। यह सोचकर ही रूह कांप उठती है कि उन्होंने कुछ दिन पहले ही अपना 12वां जन्मदिन मनाया था। वे अपने बेहतर भविष्य और शिक्षा के लिए अपने माता-पिता के साथ पुंछ आए थे, लेकिन उन्हें क्या पता था कि यह उनका आखिरी सफर होगा।
पाकिस्तान की ओर से बिना उकसावे के की गई इस मोर्टार शेलिंग ने कुछ ही मिनटों में एक पूरे परिवार की खुशियों को खून में डुबो दिया। बच्चों के चाचा और चाची की भी मौत हो गई। यह हमला सिर्फ एक सैन्य लक्ष्य पर नहीं था, यह हमला इंसानियत पर था।
रमीज खान की अधूरी दुनिया
बच्चों के पिता, 48 वर्षीय रमीज खान, अभी भी जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहे हैं। उन्हें इस त्रासदी की जानकारी तक नहीं है। डॉक्टरों की मानें तो वह अभी तक कोमा में हैं और उन्हें जब होश आएगा, तो उनके लिए सच्चाई को स्वीकार कर पाना शायद असंभव होगा। क्या कोई बाप यह सह सकता है कि उसके दोनों जिगर के टुकड़े अब इस दुनिया में नहीं हैं?
उनकी पत्नी, उर्षा खान, मानसिक रूप से टूट चुकी हैं। एक मां जिसने अपने बच्चों के लिए नई जगह, नया जीवन चुना था, अब उन्हीं की लाशों को निहार रही है। ऊपर से पति का संघर्ष—इससे अधिक दुर्भाग्य किसी स्त्री का क्या हो सकता है?
एक परिवार, एक शहर और एक देश का शोक
रिश्तेदारों के अनुसार, ज़ोया की हालत बहुत गंभीर थी और अयान की आंतें बाहर आ चुकी थीं। दोनों को बचाने की भरपूर कोशिश की गई, लेकिन नियति ने कुछ और ही तय कर रखा था। कुछ ही पलों में दोनों ने दम तोड़ दिया।
इस घटना ने न सिर्फ एक परिवार को, बल्कि पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया है। जोया और अयान अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके साथ-साथ देश के हर कोने में बसने वाले बच्चों की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं।
आतंक का शिकार बनते मासूम
यह पहली बार नहीं है कि पाकिस्तान की ओर से की गई गोलीबारी में मासूम बच्चों की जान गई हो। लेकिन बार-बार होने वाली ऐसी घटनाओं के बावजूद क्या अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कोई ठोस कदम उठाया गया है? भारत बार-बार शांति का प्रस्ताव देता है, लेकिन पाकिस्तान आतंक को समर्थन देने से बाज नहीं आता। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कितनी जोया और अयान की कुर्बानियों के बाद दुनिया पाकिस्तान को आतंकवादी राष्ट्र घोषित करेगी?
सरकार और सेना से उम्मीद
इस हादसे ने एक बार फिर दिखा दिया कि सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले नागरिक कितने असुरक्षित हैं। यह समय है कि सरकार सीमावर्ती इलाकों के नागरिकों के लिए विशेष सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करे। भारत की सेना हर हमले का जवाब देने में सक्षम है, लेकिन जब तक पाकिस्तान को वैश्विक स्तर पर अलग-थलग नहीं किया जाता, तब तक ऐसे हमले होते रहेंगे।
सरकार को चाहिए कि इस परिवार की हरसंभव मदद की जाए—चाहे वह इलाज हो, मानसिक समर्थन हो, या आर्थिक सहायता। यह केवल सरकारी जिम्मेदारी नहीं, बल्कि देश की सामूहिक संवेदनशीलता की भी परीक्षा है।
सवाल और सच्चाई
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क्या अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान को खुलकर आतंक का समर्थन करने के लिए कटघरे में खड़ा नहीं किया जाना चाहिए?
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क्या सीमा पर बसे मासूमों की जान की कोई कीमत नहीं?
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क्या हमारी पीड़ा तब ही सुनी जाएगी जब हम बदले की बात करेंगे?
ये सवाल केवल एक रिपोर्ट का हिस्सा नहीं हैं, ये देश के हर उस नागरिक की आवाज हैं जो शांति चाहता है, लेकिन सम्मान और सुरक्षा के साथ।
श्रद्धांजलि और संकल्प
जोया और अयान अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें हर उस भारतीय के दिल में रहेंगी जो आतंक के खिलाफ खड़ा है। उनकी मौत बेवजह नहीं होनी चाहिए। हमें इस दर्द को एक ताकत में बदलना होगा—एक संकल्प कि हम आतंक को उसके घर में घुसकर खत्म करेंगे, और निर्दोषों की बलि अब और नहीं होने देंगे।
आज, इस शोक के क्षण में, हम सभी को जोया और अयान को श्रद्धांजलि देनी चाहिए और उनके परिवार को यह भरोसा देना चाहिए कि देश उनके साथ है। यह संघर्ष उनका अकेले का नहीं, हम सबका है।
जय हिंद।
शहीदों को नमन।