डॉ. भीमराव अंबेडकर की 134वीं जयंती के उपलक्ष्य में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय, न्यूयॉर्क में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री डॉ. रामदास अठावले ने डॉ. अंबेडकर को "मानवता के लिए प्रकाश स्तंभ" करार दिया। उन्होंने कहा कि डॉ. अंबेडकर के विचार और सिद्धांत - समानता, प्रतिनिधित्व और मानवाधिकार - आज 2030 के सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने के लिए पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं।
कार्यक्रम का आयोजन भारत के स्थायी मिशन द्वारा किया गया था, जिसमें संयुक्त राष्ट्र के वरिष्ठ अधिकारी, प्रवासी भारतीय, नागरिक समाज के प्रतिनिधि और विविध क्षेत्रों के सदस्य शामिल हुए।
🌍 अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंबेडकर की प्रासंगिकता
डॉ. अठावले ने कहा,
"डॉ. अंबेडकर का जीवन सिर्फ भारतीय इतिहास का एक अध्याय नहीं है, बल्कि वह पूरी मानवता के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। उन्होंने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद शिक्षा, समानता और लोकतंत्र के मूल्यों को अपनाकर एक ऐसी विरासत रची, जो अब वैश्विक स्तर पर मान्य है।"
उन्होंने जोर देकर कहा कि डॉ. अंबेडकर की सोच केवल भारत तक सीमित नहीं रही बल्कि वह आधुनिक मानवाधिकार आंदोलन का चेहरा बन चुके हैं।
🏛️ संयुक्त राष्ट्र में अंबेडकर की गूंज
कार्यक्रम का विषय था - 'संयुक्त राष्ट्र के भीतर और उससे परे अंबेडकर के दृष्टिकोण की कालातीत अपील'। अठावले ने कहा कि डॉ. अंबेडकर की विचारधारा आज भी दुनियाभर में सामाजिक न्याय और समावेशी विकास की प्रेरणा बन चुकी है। उन्होंने बताया कि भारत सरकार ने डॉ. अंबेडकर की सोच को ज़मीन पर उतारने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं।
📜 प्रमुख योजनाएं और पहल
अठावले ने जिन पहलों का उल्लेख किया, उनमें शामिल हैं:
-
राष्ट्रीय विदेशी छात्रवृत्ति योजना – अनुसूचित जातियों और भूमिहीन कृषि मजदूरों के लिए विदेशों में उच्च शिक्षा हेतु पूर्ण वित्तीय सहायता।
-
पीएम-दक्ष योजना – युवाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण देकर उन्हें भारत के आर्थिक विकास से जोड़ना।
-
स्माइल योजना – ट्रांसजेंडर और भिक्षावृत्ति में लगे लोगों के लिए आजीविका, परामर्श और सामाजिक पुनर्वास सुनिश्चित करना।
उन्होंने कहा,
"इन योजनाओं का उद्देश्य केवल सहायता नहीं है, बल्कि यह सदियों पुराने सामाजिक बहिष्कार को समाप्त कर सम्मान, अवसर और अधिकार सुनिश्चित करने का प्रयास है।"
🇮🇳 संविधान और लोकतंत्र के प्रतीक
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत पी. हरीश ने भी अंबेडकर की संवैधानिक सोच को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि अंबेडकर के लिए लोकतंत्र सिर्फ एक शासन प्रणाली नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका था, जिसका उद्देश्य हर नागरिक को समान अवसर और सम्मान देना है।
हरीश ने कहा,
"संयुक्त राष्ट्र जैसी बहुपक्षीय संस्थाओं की आत्मा भी अंबेडकर की उसी नैतिक सोच में निहित है – न्याय, समानता और शांति की स्थापना।"
🗽 अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता
न्यूयॉर्क सिटी मेयर के कार्यालय के डिप्टी कमिश्नर दिलीप चौहान ने इस मौके पर एक महत्वपूर्ण घोषणा की। उन्होंने बताया कि
“न्यूयॉर्क सिटी के मेयर एरिक एडम्स ने 14 अप्रैल 2025 को 'डॉ. बी. आर. अंबेडकर दिवस' के रूप में मनाने की घोषणा की है।”
यह दिन अब न्यूयॉर्क के 8.5 मिलियन नागरिकों द्वारा सम्मानपूर्वक मनाया जाएगा, जो अंबेडकर की विरासत के वैश्विक प्रभाव को दर्शाता है।
चौहान ने कहा,
"डॉ. अंबेडकर ने हमें सिखाया कि समावेश कोई कृपा नहीं, बल्कि मौलिक अधिकार है। उनकी विरासत हमें उत्पीड़न के विरुद्ध एकजुटता से लड़ने और सामाजिक पुल बनाने की प्रेरणा देती है।"
📢 एक वैश्विक प्रेरणा
कार्यक्रम में फाउंडेशन फॉर ह्यूमन होराइजन के अध्यक्ष दिलीप म्हास्के ने भी डॉ. अंबेडकर को "समानता और नागरिक अधिकारों के सबसे प्रभावशाली वैश्विक नेता" करार दिया।
उन्होंने कहा कि डॉ. अंबेडकर का दृष्टिकोण आज भी नस्ल, जाति, धर्म और लिंग के आधार पर हो रहे भेदभाव के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में केंद्रीय भूमिका निभा रहा है।
✅ निष्कर्ष
संयुक्त राष्ट्र में आयोजित यह विशेष कार्यक्रम डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों की वैश्विक मान्यता का प्रतीक बन गया। मंत्री अठावले का भाषण यह सिद्ध करता है कि अंबेडकर की सोच केवल भारतीय समाज सुधार तक सीमित नहीं, बल्कि वह आज के वैश्विक मानवाधिकार और विकास के एजेंडे में भी मूल स्तंभ बन चुकी है।
अंबेडकर की यह वैश्विक स्वीकृति दुनिया को यह याद दिलाती है कि जब एक व्यक्ति शिक्षा, समर्पण और न्याय के मार्ग पर चलता है, तो वह पूरी मानवता को प्रेरणा दे सकता है।